Martyrs Day 2022: शहीद दिवस आज, जानिए क्यों मनाते हैं और देश की आजादी में क्या है इस दिन का योगदान –
शहीद दिवस -23 मार्च |
Shaheed Divas 23 March- शहीद दिवस यानि क्रांतिकारी वीर भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव का बलिदान दिवस, आज ही दिन भारत मां के तीन सपूतों को अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ा दिया था, उन्होंने भी देश के लिए लड़ते हुए अपने प्राणों को हंसते-हंसते न्यौछावर कर दिया था।
उन्होंने 8 अप्रैल, 1929 को अपने साथियों के साथ “इंकलाब जिंदाबाद” के नारे को पढ़कर केंद्रीय विधान सभा पर बम फेंके थे, इस मामले की गूंज बहुत ज्यादा हुई थी जिससे अंग्रेजी शासन की चूलें हिल गई थीं, जिसके लिए उनके खिलाफ हत्या का मुकदमा चलाया गया और 23 मार्च, 1931 को लाहौर जेल में उन्हें फांसी दे दी गई थी।
23 मार्च को और क्या होता है?
23 मार्च यानि आज के दिन ही राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की याद में भी शहीद दिवस मनाया जाता है मगर वो 30 जनवरी को सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर ‘शहीद दिवस’ मनाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है वहीं 23 मार्च को उस दिन के रूप में याद किया जाता है जब भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर नाम के तीन बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों को अंग्रेजों ने फांसी दी थी।
क्यों मनातें हैं शहीद दिवस –
भारत में 23 मार्च को शहीद दिवस (Martyrs’ Day) मनाया जाता है, 23 मार्च, 1931 की मध्यरात्रि को अंग्रेजी हुकूमत ने भारत के तीन सपूतों भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी पर लटका दिया था इन तीनों वीरों की शहादत को श्रद्धांजलि देने के लिए ही “शहीद दिवस” मनाया जाता है।
देश-दुनिया के इतिहास में 23 मार्च की तारीख पर दर्ज अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं का सिलसिलेवार ब्योरा इस प्रकार है:-
- 1880 : भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता बसंती देवी का जन्म।
- 1910: स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी, प्रखर चिन्तक एवं समाजवादी राजनेता डॉ राममनोहर लोहिया का जन्म।
- 1931: भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को अंग्रेजों ने फांसी दी।
- 1940 : मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान प्रस्ताव को मंजूरी दी।
- 1956 : पाकिस्तान दुनिया का पहला इस्लामिक गणतंत्र देश बना।
- 1965: नासा ने पहली बार अंतरिक्ष यान ‘जेमिनी 3’ से दो व्यक्तियों को अंतरिक्ष में भेजा।
- 1986 : केन्द्रीय आरक्षी पुलिस बल की पहली महिला कंपनी दुर्गापुर शिविर में गठित की गई।
- 1987: बॉलीवुड फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत का जन्म।
- 1996: ताइवान में पहला प्रत्यक्ष राष्ट्रपति चुनाव हुआ, जिसमें ली तेंग हुई राष्ट्रपति बने।
- 2020 : भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों की संख्या 433 हुई और देश के अधिकतर हिस्सों में लॉकडाउन लगाया गया।
1 दिन पहले दे दी गई थी फांसी –
भारत के लिए अपने प्राणों को हंसकर कुर्बान करने वाले इन तीनों बहादुरों को लाहौर सेंट्रल जेल में रखा गया था. इतिहासकार बताते हैं किर इन तीनों को फांसी देने के लिए 24 मार्च 1931 का दिन तय किया गया था, लेकिन अंग्रेजों ने इसमें अचानक बदलाव किया और तय तारीख से 1 दिन पहले इन्हें फांसी दे दी.
इसके पीछे वजह थी कि अंग्रेजों को डर था कि फांसी वाले दिन लोग उग्र न हो जाएं. क्योंकि इन तीनों की उस समय देश के युवाओं और अन्य लोगों में काफी पॉपुलैरिटी थी. इन तीनों को 1 दिन पहले भी फांसी की सजा चुपके-चुपके दी गई थी. इसकी भनक किसी को भी नहीं लगने दी गई.
भगत सिंह से जुड़ी कुछ अहम जानकारियां –
- भगत सिंह को मौत की सजा 7 अक्टूबर 1930 को सुनाई गई थी.
- जेल में भी कैदियों के साथ होने वाले भेदभाव के विरोध में 116 दिन की भूख हड़ताल की थी.
- भगत सिंह को फांसी की सजा देने वाले जज का नाम जी.सी. हिल्टन था.
- बताते हैं कि भगत सिंह की फांसी के वक्त कोई भी मजिस्ट्रेट मौके पर रहने को तैयार नहीं था.
- भगत सिंह की मौत के असली वारंट की अवधि खत्म होने के बाद एक जज ने वारंट पर साइन किए और फांसी के समय तक उपस्थित रहा.
- कुछ लोग बताते हैं कि भगत सिंह की आखिरी इच्छा थी कि उन्हें मौत की सजा फांसी पर लटकाने की जगह गोली मार कर दी जाए.
भगत सिंह ने शादी नहीं की थी. शादी की बात चलने पर उन्होंने अपना घर छोड़ दिया था. उन्होंने कहा था कि, “अगर गुलाम भारत में मेरी शादी हुई, तो मेरी वधु केवल मृत्यु होगी”.
सुखदेव से जुड़ी अहम जानकारी –
- सुखदेव का पूरा नाम सुखदेव थापर था. इनका जन्म 15 मई 1907 को पंजाब राज्य के लुधियाना शहर में हुआ था.
- सुखदेव के नाम पर दिल्ली विश्वविद्यालय में शहीद सुखदेव कॉलेज ऑफ बिजनेस स्टडीज नाम से कॉलेज है.
- इसके अलावा अमर इनकी जन्मस्थली लुधियाना में शहीद सुखदेव थापर इंटर-स्टेट बस टर्मिनल का नाम इन्हीं के सम्मान में रखा गया है.
राजगुरु से जुड़ी अहम जानकारी –
- राजगुरु का पूरा नाम शिवराम हरि राजगुरु था. इनका जन्म 24 अगस्त 1908 को पुणे जिला के खेडा गांव में हुआ था.
- राजगुरु महज 16 साल की उम्र में हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी में शामिल हो गए थे.
- 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह के साथ सेंट्रल असेम्बली में हमला करने के दौरान राजगुरु भी मौजूद थे.
इनके सम्मान में इनके जन्मस्थान खेड का नाम बदलकर राजगुरुनगर कर दिया गया था.
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